कोई भी कस्टमर नई Car खरीदने के बाद वारंटी पीरियड तक अपनी Car Servicing उस कंपनी के Service center में ही कराता है। पर कभी-कभी Servicing के नाम पर कुछ एक्स्ट्रा चार्ज आप पर लगाए जा सकते हैं। कोई कोई Servicing center काम ना करके उस काम को बिल में लगा देते हैं और वह काम कंपनी की तरफ से फ्री है ऐसे बता देते हैं पर उस काम का पैसा और इंसेंटिव के रूप में मुनाफा, वह काम कर रहे लोगों को होता है।
कस्टमर को कुछ लेना-देना नहीं होने की वजह से वह यह बात छोड़ देता है लेकिन हर बार आपके ध्यान ना देने की वजह से कंपनी कुछ महत्वपूर्ण ना होने वाले काम भी आपके बिल में लगा सकते हैं। आपको भारी खर्चा आ सकता है। इन सब से आप कैसे बच सकते हैं?
Car Servicing करते समय ये ५ बाते याद रखें
१. फाइनल बिल (Final bill)
जब आप की गाड़ी का काम हो चुका होता है, तो बिल देखने के बाद अक्सर कुछ ग्राहक एडवाइजर से बात करके बिल कम करने के बारे में बोलते हैं। पर जो कि सर्विसिंग सेंटर का एक पहले से बिलिंग का सॉफ्टवेयर रहता है इसलिए Service Adviser बिल कम नहीं सकता। इस बारे में आपको भी यह बात पता लगानी है कि Car servicing center में कौन-कौन सी मशीन पर आपकी Car का काम हुआ है, और कौन-कौन से पार्ट्स रिप्लेस करने का कितना चार्ज है। जो जो मशीन सर्विसिंग सेंटर में उपलब्ध होती है उसका चार्ज सर्विसिंग सेंटर अपने मुताबिक लगाती है।
वह चार्ज कम या ज्यादा हो सकता हैं। जब टारगेट कंप्लीट नहीं होता तो उसकी हाय चार्ज लिए जाते हैं। काम करने का लेबर कंपनी में बहुत ज्यादा रहता है। कभी-कभी कस्टमर समझ नहीं पाता कि इतना ज्यादा बिल कैसे आया। सर्विसिंग सेंटर Car Polishing, internal cleaning के भी ज्यादा चार्ज ले सकती है, लेबर चार्ज और मशीन के चार्ज सर्विस सेंटर कैसे लगाती है इसके बारे में जानकारी निकाल कर आप अपना बिल कम करवा सकते हैं। इसके लिए आपको मैनेजर से बात करनी पड़ती है।
२. पार्ट्स चार्ज (Cars Parts charge)
पार्ट के बारे में Car servicing center में लगभग 40% ज्यादा कीमत होती है। ज्यादातर लोकल पार्ट्स उसके मुताबिक बहुत सस्ते रहते है। कंपनी के पार्ट्स बहुत ज्यादा महंगे रहते हैं क्योंकि उसकी क्वालिटी अच्छी होती है। इसी वजह से कस्टमर खराब पार्ट को कंपनी में ही चेंज करवाते है। पर इसका फायदा उठाते हुए सर्विसिंग सेंटर पार्ट के रिप्लेस करने के बहुत ज्यादा चार्ज लेती है।
३. ग्राहकों को वर्कशॉप में न जाने देना (Costumers restrict in workshop)
कुछ-कुछ car servicing center में ग्राहक को workshop में जाने के लिए मनाई की जाती है। ग्राहक समझ नहीं पाता कि ऐसा क्यों है। कंपनी उनकी सेफ्टी का कारण देकर अंदर जाने के लिए मना कर देती है। पर कभी-कभी इसी का फायदा उठाते हुए कुछ काम न करके भी उसकी चार्ज बिल में लगाई जाती है।
४. Service adviser को ध्यान से सुने (listen to your service adviser)
कभी-कभी कंपनी के जो टारगेट रहते हैं उसी के अनुसार Service adviser आपको कराने वाले काम बताता है। उस अनुसार आप भी उसकी हां में हां मिला देते हैं पर आपको यह बात पता नहीं रहती की कंपनी का मुनाफा उसमें लगभग ३० से ४० फ़ीसदी रहता है अगर Service adviser कुछ भी बोले तो उसको वापिस उस काम के बारे में प्रश्न करें। जब बहुत जरूरी हो तभी वह काम करवाएं। या फिर १ दिन car workshop में छोड़कर अगले दिन थोड़ी जानकारी निकाल कर वह काम करवाएं, ताकि आपका खर्चा कम हो।
५. वॉरेंटी चेक करे (check Warranty)
हर कोई कस्टमर मिलने वाली वारंटी के साथ अपनी गाड़ी की सर्विसिंग कराता है। कोई भी पार्ट अगर फेल हो गया तो उसको वारंटी में रिप्लेस कराने के लिए कस्टमर हमेशा तैयार रहते हैं। पर इस कंडीशन में अगर कंपनी बहुत इंटरेस्टेड हो, तो ध्यान रखें कि इसमें उनका मुनाफा इंसेंटिव रूप में रहता है क्योंकि वह पार्ट बनाने वाली कंपनी और सर्विसिंग सेंटर में कोई कनेक्शन नहीं रहता।
वह सिर्फ वारंटी टैग लगाकर उस पार्ट को कंपनी में भेज देती है और warranty claim होने के बाद वह पार्ट आपकी गाड़ी को बिठाया जाता है। कभी-कभी मैनेजर कस्टमर के साथ शामिल होकर गाड़ी का नुकसान करवा देते हैं, और बाद में बोलते हैं की वारंटी में कर लेंगे। अगर वह टारगेट कंप्लीट होता है तो इनडायरेक्टली कंपनी का मुनाफा रहता है।
इसी वजह से जो कस्टमर को लगता है कि वारंटी में कुछ भी मिल सकता है और मुफ्त में भी मिल जाता है। Warranty दो कंपनियों के बीच एक सौदा रहता है जो इनडायरेक्टली भविष्य में आपको ही चुकाना पड़ता है वारंटी के दौरान बहुत समय लगने की वजह से बहुत से कस्टमर नाराज भी होते हैं।
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